वहम है तुम्हारा
मैं
नहीं नहीं मरता
तुम्हारी
काटी हुयी लकीरों से
ना ही मुझे चढ़ता है
बुखार..
तुम्हारे तमाम नीम्बू मिर्चें
बेकार/ बेअसर हैं मुझ पर,
कुछ भी कर लो..
तुम
अपनी मक्कारियों के साथ -साथ
मुझे भी क्यूँ नहीं दे देते
एक सह-अस्तित्व
आखिर
मैं
तुम्हारे भीतर का शुभ हूँ
तुम्हारा कोमल पक्ष हूँ
"मैं"
*amit anand
No comments:
Post a Comment