प्रिये!
मैं अगर "मैं" ना होता तो "तुम" होता
मैं रचता नित नए अवरोध
दरवाजे की
क्यारियों पर उजाता
तुम्हारे लिए नए नए अपराधबोध ,
नए तानो-फिकरों की फसल उगता
बात बात पर प्रतिरोध करता,
प्रिये!
सोचो अगर
"मैं" मैं ना होता
तो मैं भी टाँगता अपना वजनी भीगा क्रोध
तुम्हारी नेह की महीन डोर पर,
हाँ लेकिन मजे की बात यही है
कि
"मैं" अगर "तुम" बन जाता तो
आखिर
"तुम्हे" भी तो बन जाना था "मैं"
त्रासद है
कहानी नहीं बदलती तब भी
बस "पात्र" बदल जाते,
*amit anand
मैं अगर "मैं" ना होता तो "तुम" होता
मैं रचता नित नए अवरोध
दरवाजे की
क्यारियों पर उजाता
तुम्हारे लिए नए नए अपराधबोध ,
नए तानो-फिकरों की फसल उगता
बात बात पर प्रतिरोध करता,
प्रिये!
सोचो अगर
"मैं" मैं ना होता
तो मैं भी टाँगता अपना वजनी भीगा क्रोध
तुम्हारी नेह की महीन डोर पर,
हाँ लेकिन मजे की बात यही है
कि
"मैं" अगर "तुम" बन जाता तो
आखिर
"तुम्हे" भी तो बन जाना था "मैं"
त्रासद है
कहानी नहीं बदलती तब भी
बस "पात्र" बदल जाते,
*amit anand
गहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteसही कहा
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