Monday, January 9, 2012

बार बार मन मे हुलासें भर, आँगन की किलकारियों के सपने देखती "नौगावां वाली भौजी" आज भोर मे चल बसीं!
पैंतीस- चालीस साल की जिंदादिल हंसमुख भौजी की गोद अभी तलक सूनी ही थी! साल दर दर साल से बार बार उनकी कोख मे मौसमी बादलों की तरह एक अंखुआ पनपता और कोंपलें फूटने से पहले ही ... आसमान सूना हों जाता था .. सूनी रह जाती थी भौजी की आँख...

बात बात मे "छोटके बौव्वा" कह कर दुहरी होते रहने वाली भौजी ने अबकी बड़े जतन से सहेजा था उनमे पनपा हुआ अंकुर..... डॉक्टर... हकीम , वैद.. मंदिर ... मस्जिद ... मजार....
हर जगह... हर तरह से मन्नते मांगती हुयी भौजी बहुत खुश थी इन दिनों... पांचवां महिना जो चल रहा था.....

किशन जैसे लालन की चाह..... बेचारी बार बार की त्रासदी झेलती देह मे एक अजन्मा सपना सहेजे कल जन्माष्टमी का निराजल व्रत थीं!

बाकी का काम खून की कमी और भादों के तपते उमसते दिन ने कर दिया....

"नौगावां वाली भौजी" की आँखों मे पनपता मेरा अनदेखा सपना .... बीती रात कृष्ण जन्म के समय के आस-पास... बीत गया!

मेरे पास आने वाले मेहमान के लिए लायी हुयी "लाल फरों वाली गुडिया" कसमसा रही है...

मन है कि मानता ही नहीं.... भीतर का पागल बाकी के चार महीनो की प्रतीक्षा मे है....

* amit anand

22 August 2011