Thursday, May 24, 2012

महावर



आज-कल
बड़े
एहतियात से
घोलते हों
तुम
रंग
माटी के दीये मे,

और
लाल रंग
तुम्हारी उँगलियों के पोर छू
महावर बन जाता है,

मेरे
आँगन मे
तुम्हारे शुभ पाँव
उभर आते हैं!

*amit anand

गिफ्ट

बजबजाते कचरे से 
पन्नियाँ खींचते 
टीन -टप्पर बटोरते हुए
बिधनुआ अनाथ 
गुनगुनाता है 
हरामीपन का राग ,

कल 
कचरे में 
गिफ्ट वाली रंगीन पन्नियाँ निकलेंगी 
आज 
FATHER'S DAY जो है !!

तुम भूल रही हों मुझे

गुजरे समय की
वो 
"रुमाल"

जिसमे 
...बाँध कर
तुमने
अपनी सुधियाँ दी थीं,

जिन्दगी की 
भाग दौड़ मे
गुम गयी...

गुम हों गया 
उसका कढाई दार किनारा
उसकी गमकती महक
उसमे लुभाती हुयी
तुम्हारी नेह
सब...

शायद 
मैं उसे
किसी जाती हुयी ट्रेन मे भूल आया,

तुम्हारी सुधियाँ 
मुझसे दूर भागती जा रही हैं
शायद
स्टेशन दर स्टेशन ...

सुनो..
तुम भूल रही हों मुझे 

मुझे माफ़ करना
बिलकुल तुम्हारी ही तरह
मैंने गुम कर दीं 
तुम्हारी सुधियाँ भी!

*amit anand

आखिर क्यूँ

दूर
वहाँ पलाश के पास से
मुड गयी है
नयी बनी सड़क,

अब इस सूनी पगडण्डी पर
कोई नहीं आता,

दूर पहाड़ों की ओर से
बांसुरी बजाता
यदा कदा आनेवाला
चरवाहा भी नहीं आया
अरसा हुआ,

फिर भी
शाम ढलते ही
वो
सूनी पगडण्डी पर
जला देती है
एक दीप,

गाते हुए
एक पहाड़ी गीत-

"कोई ...
आखिर क्यूँ आएगा"!!

*amit anand

बंधन

अरसे से
नहीं आया
कोई "बहेलिया"

जाल बिछाने / दाना डालने,

वर्त्तमान का मैदान
सूना पड़ा है,

मन के पाखी
आतुर हों
छटपटाते हैं....

बंधन .............

Monday, May 7, 2012

"प्रश्न"

क्या कभी
कांच के गिलासों को भी लगती होगी
"प्यास"

नंगी सड़क पर
चिलचिलाती लू ने भोगी होगी भला
"चिपचिपाती उमस"

क्या कभी
साहब के झबरे कुत्ते को भी
... लगी होगी
"भूख"

क्या कभी किसी कुर्सी ने भी पूंछा होगा ये "प्रश्न"

*amit anand

खुले शूलेस

बड़े स्कूलों की दीवाल भी
हड़प लेते हैं
बड़े बड़े चेहरे ,

उड़ती मछलियाँ
गीत गाती तितलियाँ
मटकते बौने / सेब /आम/अनार

गुम जाते हैं
बचपन के  की तरह ..
...
उनपे टंग जाते हैं
खिचड़ी बालों वाले न्यूटन
अजीब सी मूंछों वाले मार्क्स ....

बड़े का अदब हमें बड़ा बनाता हों शायद!

*amit anand