दूर
वहाँ पलाश के पास से
मुड गयी है
नयी बनी सड़क,
अब इस सूनी पगडण्डी पर
कोई नहीं आता,
दूर पहाड़ों की ओर से
बांसुरी बजाता
यदा कदा आनेवाला
चरवाहा भी नहीं आया
अरसा हुआ,
फिर भी
शाम ढलते ही
वो
सूनी पगडण्डी पर
जला देती है
एक दीप,
गाते हुए
एक पहाड़ी गीत-
"कोई ...
आखिर क्यूँ आएगा"!!
*amit anand
वहाँ पलाश के पास से
मुड गयी है
नयी बनी सड़क,
अब इस सूनी पगडण्डी पर
कोई नहीं आता,
दूर पहाड़ों की ओर से
बांसुरी बजाता
यदा कदा आनेवाला
चरवाहा भी नहीं आया
अरसा हुआ,
फिर भी
शाम ढलते ही
वो
सूनी पगडण्डी पर
जला देती है
एक दीप,
गाते हुए
एक पहाड़ी गीत-
"कोई ...
आखिर क्यूँ आएगा"!!
*amit anand
मन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.....
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