पक चुके
गेहूं के खेतों पर
दरातियाँ चलती हैं
कुछ
रंगीन चूड़ियाँ
खुरदुरी हथेलियाँ
छूती..
खनकती फिरती हैं
गेहूं का पोर पोर,
जड़ों से कटते हुए
गेहूं
बड़े इत्मीनान से सुनता है
एक गीत-
"कटिया का गीत"
बोल झरते जाते हैं
और
सरहद पर शहीद सैनिकों की तरह
जमीन पर पसरते जाते हैं
पके हुए गेंहूँ,
हाँ पर..
जड़ें अभी भी जमीन से जुडी हुयी ही रहती हैं!
*amit anand
गेहूं के खेतों पर
दरातियाँ चलती हैं
कुछ
रंगीन चूड़ियाँ
खुरदुरी हथेलियाँ
छूती..
खनकती फिरती हैं
गेहूं का पोर पोर,
जड़ों से कटते हुए
गेहूं
बड़े इत्मीनान से सुनता है
एक गीत-
"कटिया का गीत"
बोल झरते जाते हैं
और
सरहद पर शहीद सैनिकों की तरह
जमीन पर पसरते जाते हैं
पके हुए गेंहूँ,
हाँ पर..
जड़ें अभी भी जमीन से जुडी हुयी ही रहती हैं!
*amit anand
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