Sunday, April 15, 2012

शहर की नंगी सड़क

उठो साथी
कदम बढाओ मेरे साथ
मुट्ठियाँ भीचों
भरो एक हुम्म्कार,

एक जुट हों जाओ
साथ-साथ आओ,

आओ
बाँट लेते हैं शहर का हर चौराहा
सारी लाल बत्तियां,

बाँट लेते हैं
सारी कालोनियां, ओफिसें,बाजार

बांटना जरूरी है
क्योंकि-
हमें भी चाहिए एक मकान
इन्ही चौराहों,लाल बत्तियों/ऑफिसों के एन बीच,

आधी "लैला" के शुरूर मे
धुत्त
गुमानी लंगड़ा बन जाता है
"माओत्से तुंग" या फिर कार्ल मार्क्स

और
कुचलता है
शहर की नंगी सड़क को
अकेले मे

"अपनी अकेली टांग के साथ"

*amit anand

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