पथराये सपने
Monday, April 16, 2012
शिकार
आज फिर
चुटकियाँ टीस रहीं
उतर आया है आँखों मे लाल रांग,
भवें चढी हुईं
साँसें-
उग्र,
आज मन वहशी शिकारी है
चाँद, जुगनू,सितारों
तितलियों भाग जाओ
छिप जाओ
आज तुम्हारी शामत है
"मैं"
शिकार पर हूँ आज!
*amit anand
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