Monday, April 16, 2012

प्रथम कथा

आओ
आज तुम्हे एक किस्सा सुनाता हूँ!
बहुत पुराना किस्सा, ये किस्सा मेरे दादा से भी पुराना है या शायद उनके दादा से भी पुराना हों, हाँ
मेरा किस्सा पुरानी शराब की तरह है, मादक.... तेज गंध वाला
लेकिन है बहुत बहुत पुराना ......
ये किस्सा शायद तब का है जब स्वरों ने शब्द के रूप धरे थे पहली बार, पहाड़ी कंदराओं मे धुंध भरी आंखों मे पनपी ये आदि कथा है, किसी प्रथम किस्सागो का पहला किस्सा ....
हाँ लेकिन आज भी सामयिक है , मानो आज ही लिखा गया हों इसको आज ही सुनाया गया है मुझे पहली बार,
मैं ही नहीं ... किस्सा सुन ने के बाद तुम भी यहि कहोगे की ये "प्रथम कथा" कभी भी पुरानी नहीं हों सकती!

सुनोगे मेरा किस्सा?
अथाह भावों से भरा.... हज़ार हज़ार घटनाक्रम ... लाख लाख पात्र .... कोटि कोटि त्रासदियाँ... खिलखिलाहटें ... आंसू... स्पर्श .... आलिंगन .... मिलन... विछोह

मेरे आदि किस्से का नाम है-
"प्रेम"

हाँ पर ..... इस किस्से की कहानी गुम गयी है मुझसे ..... खोज रहा हूँ, मिलते ही सुनाऊंगा!

हाँ .... अगर तुम्हे मिले तो................


*amit anand

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