दुद्धी घुली दवातें
कहाँ गयीं
कहाँ गयीं -कलमुही तख्ती
मासाब की छपकी...
गोल चक्केवाला "भोपूबाजा"
फिरंगियों का खेल
कागज के रंगीन चश्मे कहाँ गए?
ओह
तुम सही थे दादा
तुम्ही ने कहा था
उस रोज़
भाप उगलती रेल गाडी को उंगली दिखा कर ..
बादलों की सी आवाज मे
"छुटके"
एक रोज़ मैं चला जाऊँगा इन पटरियों की आखिरी छोर पर
तुम्हारी तख्ती और मॉससाब की छड़ी के साथ,
और तुम चले भी गए दादा!
आज तो वो भापगाड़ी भी नहीं दिखती!
दादा
मैंने देखा है आज
दाढ़ी बनातेहुए
मेरे बाल भी सफ़ेद हों रहे,
दादा!
मैं डर रहा
मैं नहीं कर सकता कोई वायदा
अपने "छुटके " से...
मुझे
पता है
क्या होता है
"संतरे की फान्कवाली टॉफियों का गुम जाना"!
*amit anand
कहाँ गयीं
कहाँ गयीं -कलमुही तख्ती
मासाब की छपकी...
गोल चक्केवाला "भोपूबाजा"
फिरंगियों का खेल
कागज के रंगीन चश्मे कहाँ गए?
ओह
तुम सही थे दादा
तुम्ही ने कहा था
उस रोज़
भाप उगलती रेल गाडी को उंगली दिखा कर ..
बादलों की सी आवाज मे
"छुटके"
एक रोज़ मैं चला जाऊँगा इन पटरियों की आखिरी छोर पर
तुम्हारी तख्ती और मॉससाब की छड़ी के साथ,
और तुम चले भी गए दादा!
आज तो वो भापगाड़ी भी नहीं दिखती!
दादा
मैंने देखा है आज
दाढ़ी बनातेहुए
मेरे बाल भी सफ़ेद हों रहे,
दादा!
मैं डर रहा
मैं नहीं कर सकता कोई वायदा
अपने "छुटके " से...
मुझे
पता है
क्या होता है
"संतरे की फान्कवाली टॉफियों का गुम जाना"!
*amit anand
ufffffffff...........
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति...
बचपन में चले गए...
kaise tum inn chhoti chhoti bato ko sajo kar , fir apni rachna me peero dete ho.....simply great:)
ReplyDeletesach me har kuchh badal raha hai, ham bhi.. hamare badle koi aur aa jayega....hai na!!
वाह...........
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव...
बड़ी सहजता से, सरलता से उकेर दिये चंद पंक्तियों में....
बहुत खूब...
अनु