रोज़ रोज़ ही
लगभग एक से संवाद
सीमित शब्द,
एक सी भावभंगिमाएँ
... एक तरह के वस्त्र
रोज़ रोज़
घुटनों के बल बैठना
ऊब गया हूँ
इस
काठ के मंच से!
दर्शक बदलते जाते हैं
पर
तुम्हारे मंच का कथानक नहीं बदलता!
*अमित आनंद
लगभग एक से संवाद
सीमित शब्द,
एक सी भावभंगिमाएँ
... एक तरह के वस्त्र
रोज़ रोज़
घुटनों के बल बैठना
ऊब गया हूँ
इस
काठ के मंच से!
दर्शक बदलते जाते हैं
पर
तुम्हारे मंच का कथानक नहीं बदलता!
*अमित आनंद
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