अबके कटिया मे भी नहीं आया
"बितना" का मरद!
मनसुख जाने का कमाता है दिल्ली मा,
पिछली दफा भी आया था
चार साल बाद
और साथ मे लाया था शहरी रोग
बेशरम
जाते जाते एक लड़का
और अपना रोग दे गया बितना को!
और
बितना!
निहाल..
खुश
मरद का रोग अपने माथे जो उठा लिया!
बितना का विश्वास
अबके लौटेगा तो एक दम चंगा आयेगा उसका मरद!
भले ही ई सहरी रोग
बितना का परान लई बीते!
कौनो फरक नहीं
मरद की जान तो बचेगी!!
बितना!
कर रही है इन्तजार
साल दर साल
गलती देह... उखडती साँसों के साथ!
बितना
जानती है अन्दर से
के
नहीं लौटेगा उसका मनसुख
अब कभी भी!
फिर भी
बितना करती है इन्तजार ...
नियति को झुठलाने के प्रयास मे!!
*amit anand
sachhai ko bahut safalta se utara hai ji aapne..........kin shabdon me tareef karu.....
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