Friday, June 4, 2010

"मेरे बिपरीत"


शिव!!
तुम यहाँ भी??

मेरे
गाँव के बीच बने पक्के शिवाले का सुख छोड़
क्या लेने आये हो
यहाँ??

कीरत की माई के लोटे का जल
गोधू बाबा का धतूरा
बडकी माई के फूल....
क्या कोई कमी रह गयी थी वहाँ??

जो
यहाँ
इस धुंआ उगलते शहर के चौराहे पर
खुले आसमान मे
पीपल के तले
आसन लगाये हो??

कौन देता होगा तुम्हे यहाँ जल??
भोग कौन लगता होगा तुम्हारा??

तुम्हारे सर के ऊपर की घंटी??
तुम्हारी छत.....
सब कहाँ गए??

क्या तुम्हे अब भाने लगा है
शहर का धुंआ
मोटरों की चिल्ल-पों
बिलकुल
"मेरे बिपरीत"


*amit anand

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