Friday, June 4, 2010

किस्सों का भूत


स्कूल के गेट पर
कच्ची अमिया... लाल बेरियाँ
इमली.. अमरख का ठेला लगता
वो लंगड़ा बूढ़ा!

जिसके ठेले से
चुराए गए अमरख के चटखारों मे
असीम आनंद था!

जिसकी डोरी दार थैली मे
जादुई खजाने की तरह
तमाम खरे खोटे सिक्कों की एक
फौज हुआ करती थी!

जिसकी मलगजी आँखें
झुर्रीदार उंगलिया
कान के बाल
खिचड़ी दाढ़ी
उसे किस्सों का भूत बनाते थे!!

"अब कभी नहीं आएगा"
वो ठेलेवाला बूढ़ा
कल शाम रेलवे क्रासिंग पर
मुझे बचाते बचाते
वो खुद आ गया ट्रेन के तले,
उसका ठेला
उसकी अमिया
डोरीदार थैली
अजीबोगरीब सिक्के
सब बिखर गए हैं अब
हवा मे
किस्सों की तरह!!

*amit anand

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