Friday, June 4, 2010

धन्य


मेरे दरवाजे का बूढ़ा भिखारी
मैली गठरी
टूटा चश्मा
जगह जगह चोट के निशान भरे पावँ
कांपती उँगलियों से
समेटता है चिड़ियों के लिए बिखेरे गए / दो चुटकी चावल
और धन्य कर देता है
मेरा दरवाजा!!


*amit anand

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