Friday, June 4, 2010

कल रात बारिश हुयी थी


चौराहे की नुक्कड़ पर बैठी
चिर प्रतीक्षारत बुढ़िया
पथरायीं आँखें
कांपते हाथ!

जाने कितने दिनों से भटकती
उसकी गठरी
अन्नी-दुअन्नी के दो चार बेकार सिक्के
दो जोड़ी फटी साड़ियाँ
धागे से बंधा चश्मा!

सब गुम हो गए
सुना है कल रात बारिश हुयी थी
बहुत तेज
मेरे चौराहे पर!


*amit anand

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