Friday, June 4, 2010

मैं


मैं
शायद.......
माध्यम मात्र हूँ
दुखों के दरकते हुए पहाड़ से रिसते हुए शब्दों का !

मैं एक हूँ
मैं अनेक भी...
मैं साकार हूँ
कल्पना भी मैं!

मैं सार
मैं सन्दर्भ भी मैं,
मैं दैत्य हूँ
गंदर्भ भी मैं !

मैं खुद चकित हूँ
कौन हूँ
मैं मुखर हूँ
मौन हूँ!

रातरानी की सुबह का फूल हूँ
बालपन के पांव का मैं शूल हूँ
मैं कुमुदनी की नसों का तार हूँ
एक बूढ़े स्वप्न का विस्तार हूँ!!

दर्द हूँ मैं
शूल हूँ अनुराग हूँ
पूस की ठंढी सुबह का राग हूँ!


*amit anand

1 comment:

  1. aap to bade fankaron ki tarah likhte hain.. aapki lekhni ko mera salam....

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