Friday, June 4, 2010

बंद खिड़कियाँ


बंद खिड़कियाँ
सहेजती हैं एक पूरा युग
दादी की पथराई आँखें
बाबा का फटा कुरता
अम्मा के चूल्हे पर घटा हुआ नमक,

खिड़कियाँ सहेज लेती हैं सारी व्यक्तिगतता !!

दारु के नशे मे लाल
बापू की लाल आँखें
अम्मा की नील पड़ी पीठ
छुटके का फटा हुआ पाजामा
बडकी दीदी के वैधव्य का यौवन!

एक पर्दा दाल देती है बंद खिड़कियाँ!

सुना है कल मकान मालिक आया था
चार साल का बकाया है
व्याज मे खिड़की का फटका जाएगा,
तो क्या
टंग जायेगी एक
फटी बोरी
और फिर से सहेजेंगी कुनबे का दर्द
बंद खिड़कियाँ!!


*amit anand

2 comments:

  1. bahut utkrist aur marmik rachna.....

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  2. बंद खिड़कियाँ सच ही सब समेत लेती हैं .... मार्मिक अभिव्यक्ति

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