Monday, March 14, 2011

खाली बर्तन


.
उफनते दूध सी
तुम्हारी नेह...
ढलकती ही रही बार बार

और
सारे गिले शिकवे
प्यार मनुहार ,

बहते रहे...

बहती रहीं सुधियाँ
स्नेह
आलिंगन
स्पर्श ....

सब कुछ

और

आखिर मे
परिस्थिति के चूल्हे पर
देह का खाली बर्तन
सूना पड़ा था!!

*amit anand

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