प्रतीक्षित
चार पांच दिन से
आती थी
एक
सतरंगी तितली
दरवाजे के गुलाब पर,
कुछ दिन पहले
साख पर
कलियाँ आयीं थीं,
अधखिली कलियाँ
पिछले तमाम दिनों से
मैंने
तितली के साथ ही
भोगी थी
प्रस्फुटन की प्रतीक्षा,
और
ऊब कर
कल से नहीं गया
गुलाब तक!
आज
सुबह मुझे
गुलाब की कंटीली साख पर
तितली के पर मिले हैं,
सतरंगे ... कोमल पर !!
शायद तितली....
प्रतीक्षित ही मर गयी!!
*amit anand
पहले भी कहा था .. और अब भी कह रही हूँ ... बेहतरीन रचना है .. कमाल का लिखा है आपने दद्दा ..
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