Friday, March 4, 2011

चल भाई

चल भाई काम पर चलते हैं
उठ तो...
जाग...
सपने मत देख
सपने सिर्फ चलते हैं!

मुंह धुल
रात की बासी रोटी खा
पैर के घाव मत देख
घाव पर
सड़क की मिटटी मलते हैं,

चल भाई चलते हैं

चल चल
आज सड़क को बन जाना है
आखिर साहब को
इसी राह जाना है

मजूरी की मत सोच
मजूरी से ही तो
ठीकेदार अमीर बनते हैं!

चल भाई चलते हैं

उठ
बीवी को जगा
काम पर लगा
बच्चे को तसले मे डाल
मत कर मलाल,

बुखार है तो क्या
मत डर

मजूरों के बच्चे
ऐसे ही तसलों मे पलते हैं

चल देर हों रही
चल भाई चलते हैं!!

देर आना कर
उठा फावड़ा
मिटटी भर
देर हुयी तो ठीकेदार का दाम रुकेगा
दुःख होगा उसे
बीवी के गहने ... बेटे की गाडी सब रुकेंगे

पाप लगेगा
उनका श्राप लगेगा

धीर धर
श्रद्धा से पुण्य कमा
जोर लगा सड़क बना

मत सोच की हमारे दुःख दर्द
ठीकेदार को
कब खलते हैं

चल हाथ बाधा
कंधा जोड़
चल भाई! काम पर चलते हैं!!

*amit anand

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