Thursday, July 22, 2010

घर

तेरी गली मे
मेरी भटकन के चार-छः दिन

सब कुछ जैसे
मेरा सपना !
धुले धुले दिन,
खिली खिली शाम
स्याह - सर्द रातें!

मैं भटक सकता था
एक पूरी उम्र
तेरी गली मे!

लेकिन मेरे
अनदेखे प्रेम
मुझे अब
घर भी जाना है!!

*amit anand

1 comment:

  1. मैं भटक सकता था
    एक पूरी उम्र
    तेरी गली मे!

    लेकिन मेरे
    अनदेखे प्रेम
    मुझे अब
    घर भी जाना है!!
    ..wah,...bahut gambheer likhte he aap amit aannad ji..sachmuch aannad aagya aapki rachna srover me dubki lga kr

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