पथराये सपने
Saturday, July 16, 2011
"मन की पतंग"
आखिरी बार
दूर...
बहुत दूर
वहाँ उस चाँद के आस-पास
गयी थी
"मन की पतंग"
और
फिर
लौटी नहीं,
हाथ सिर्फ
थोडा सा मंझा
और
चरखी ही शेष रही!
अब सूनी चाँद रातों मे
मुंह चिढाता चाँद तो दिखता है
मगर पतंग
गुम है!!
*amit anand
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