Sunday, July 24, 2011

थिगलियाँ

माँ की
कांपती उँगलियों मे फंसी
सुई
और साडी की थिगलियाँ,

बुनती हैं
एक नया संसार
उसके
आस-पास,

खाली भदेली
बच्चों के सपने
टपकती छत
जाने क्या क्या...

सब...

टांक लेती है
मेरी माँ,

अभी
"भी"
कई पयबंदों की
जगह खाली है!!

*amit anand

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