Thursday, November 15, 2012

गुनाह

बरसती दुपहरियों मे बरामदे पर चारपाई डाले हुए मन .... हवाओं के साथ बहती आती हुयी बूंदों मे भीगता ... सिहरता अतीत की ओर भागता है!
बीते दिन याद आते हैं.... एक अनदेखी लेकिन चम्पई एहसास समेटे हुए एक लड़की... जिसकी सांस सांस मे कविता के शब्द झरा करते थे.... मंदिर की घंटियों के से शब्द!

याद आते हैं बीते हुए दिन.... तकिये मे सिर छिपाए हुए, 
आरती के सुर.... शाम के धुंधलके मे मस्जिद से आती हुयी अजान सी उसक
ी बोली.... उबलते हुए दूध मे अभी अभी डाले गए केशर की सी यादें भीतर भीतर घुलती हैं!

अपने पाप..... अपना छल याद आता है, बारिशें हैं की जोर पकडती जा रहीं! भीतर की ढृढ़ दीवाल दरक रही हों मानो
उसकी पावनता... उसका अपनापन....
ओह ओह
तकिया पानी मे नहीं भीगा शायद..... आँखें गीली हैं मेरी!

मेरे ईश्वर!
भले ही मेरे गुनाह ना माफ़ कर!

लेकिन उस मासूम फ़रिश्ते को खूब सारी खुशियाँ देना...


*amit anand

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