अरसा पहले
जब मंदिरों मे हुआ करती थी
सच मुच की आरती ,
मस्जिदें अजान मे गुनगुनाती रहती थीं,
जब मंदिरों मे हुआ करती थी
सच मुच की आरती ,
मस्जिदें अजान मे गुनगुनाती रहती थीं,
तब
जबकि भूख ...
माँ के हाथों की लज्जत मे हुआ करती थी,
उसी दौर मे
एकाएक पागल हों गया था आदमी
कलाईयों मे राखी की जगह
तलवारें आ गयी थीं
औरतें -बच्चे काट डाले गए थे
जानवरों की तरह,
हाँ एक दम उसी दरमियाँ
जब
चूल्हों की आग
सुलगने लगी थी
दूसरों के घर
और
बेटियों के बदन पर....
उसी मारकाट के दौर मे
जब की
दो भाइयों ने
बाँट लिया था अपना आँगन,
कुछ फसलें कट चुकी थीं
कुछ का कटना बाकी था
वो दौर......
ओह
उस रेल-पेल
भागम भाग
मार काट मे
दो भाइयों की लाशें
जिन्दा बच गयीं थीं
जिन्हें हम आज
हिन्दू और मुसलमान कहते हैं!
*amit anand
जबकि भूख ...
माँ के हाथों की लज्जत मे हुआ करती थी,
उसी दौर मे
एकाएक पागल हों गया था आदमी
कलाईयों मे राखी की जगह
तलवारें आ गयी थीं
औरतें -बच्चे काट डाले गए थे
जानवरों की तरह,
हाँ एक दम उसी दरमियाँ
जब
चूल्हों की आग
सुलगने लगी थी
दूसरों के घर
और
बेटियों के बदन पर....
उसी मारकाट के दौर मे
जब की
दो भाइयों ने
बाँट लिया था अपना आँगन,
कुछ फसलें कट चुकी थीं
कुछ का कटना बाकी था
वो दौर......
ओह
उस रेल-पेल
भागम भाग
मार काट मे
दो भाइयों की लाशें
जिन्दा बच गयीं थीं
जिन्हें हम आज
हिन्दू और मुसलमान कहते हैं!
*amit anand
uff!!
ReplyDeletemere pass tumhare kavita ke liye comment hi nahi hota...
bas speechless ho jata hoon
http://www.parikalpnaa.com/2012/12/blog-post_14.html
ReplyDeleteदो भाइयों की लाशें
ReplyDeleteजिन्दा बच गयीं थीं
वाह !!!
Very nic line
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteVery nic line
ReplyDeleteVery nic line
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