Thursday, January 6, 2011

चढ़ी भदेली खाली बजती

तुम क्यूँ सोचो कि मैं तुमको
फूल कभी लिख पाऊंगा,

तुम मुझको मुस्काती मिलना
मैं कांटे लेकर आऊंगा!!

आग बरसती भरी दुपहरी
तेरे तपते आँगन में
चिर प्यासी आँखों के सपने
खिलक पड़ेंगे जब तन में,

तुम तपती धरती बन जाना
मैं पुरवा बन जाऊँगा!!
तुम क्यूँ सोचो........

चढ़ी भदेली खाली बजती
बच्चों की है थाली बजती
आंसू पर है ताली बजती
बनिए की है गाली बजती,

तुम अपने कंगन धर आना
मैं सपने ले आऊंगा,
तुम क्यूँ सोचो कि मैं तुमको
फूल कभी लिख पाऊंगा!!

*amit anand

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