पथराये सपने
Sunday, July 24, 2011
थिगलियाँ
माँ की
कांपती उँगलियों मे फंसी
सुई
और साडी की थिगलियाँ,
बुनती हैं
एक नया संसार
उसके
आस-पास,
खाली भदेली
बच्चों के सपने
टपकती छत
जाने क्या क्या...
सब...
टांक लेती है
मेरी माँ,
अभी
"भी"
कई पयबंदों की
जगह खाली है!!
*amit anand
Saturday, July 16, 2011
"मन की पतंग"
आखिरी बार
दूर...
बहुत दूर
वहाँ उस चाँद के आस-पास
गयी थी
"मन की पतंग"
और
फिर
लौटी नहीं,
हाथ सिर्फ
थोडा सा मंझा
और
चरखी ही शेष रही!
अब सूनी चाँद रातों मे
मुंह चिढाता चाँद तो दिखता है
मगर पतंग
गुम है!!
*amit anand
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